Thursday, June 4, 2009

ऑपरेशन ब्लू स्टार रजत जयंती

किसी दुखदायी घटना को याद करने का मतलब यह नहीं होता कि सूखे हुए ज़ख्मों को ताज़ा किया जाए या गडे मुर्दे उखाडे जायें, लेकिन सयाने कहते हैं की अगर आप अपने गुजरे हुए वक्त पर पिस्तौल से गोली चलाओगे तो आने वाला वक्त आपको तोपों से उडाएगा। आने वाली पीढियों को अपने अतीत के बारे में पूरी जानकारी रहे इसलिए भी मौका पड़ते ही हमें नज़रसानी से कोताही नहीं बरतनी चाहिए।

ब्लू स्टार ऑपरेशन का ज़िक्र आते ही जो दो नाम जेहन में फौरी तौर पे आते हैं, उनमें से एक नाम है इंदिरा गाँधी और दूसरा नाम है जरनैल सिंह भिंडरावाला इन दोनों का ज़िक्र आते ही मुझे अपने स्वर्गीय बड़े भाई साहब की याद आती है जो कहा करते थे ' पापी कभी अकेला नही मरता, कईयों को साथ लेकर मरता है' इन दोनों की बात छोडिये, इतिहास गवाही देता है रावण, दुर्योधन से लेकर हिटलर, मुसोलिनी तक जितने भी पा
पी मरे हैं, अकेले नहीं कमबख्त कईयों को साथ लेकर मरे।

पिछली सदी के महानायक के लिए एक पत्रिका 'इंडिया टुडे' ने पिछले दिनों एक जनमत सर्वेक्षण किया था और सभी ने एक मत से जिस
क्सियत को महानायक चुना था, वह थे - शहीद भगत सिंह मेरे ख्याल से एक जनमत संग्रह और करवाया जाए, सदी के खलनायक के लिए, तो शत - प्रतिशत लोग खलनायक के लिए एक ही नाम चुनेंगे और वह नाम होगा- जरनैल सिंह भिंडरावाला हजारों लोगों का हत्यारा जरनैल, जो पंजाबी था, शक्ल सूरत से सिख भी था, जिसे आज भी कई सिरफिरे शहीद और संत कहते हैं। जिसने पंजाब, पंजाबियों और पंजाबियत को जो नुक्सान पहुँचाया है वह शायद ही किसी विदेशी हमलावर ने भी पहुँचाया हो।

सत्तर के दशक के आखरी दिनों में इमर्जेंसी के बाद जनता सरकार आयी थी पंजाब में बादल सरकार थी, जब भिंडरावाला और निरंकारियों के बीच मारकाट शुरू हुई। तब कोई नहीं जनता था की तीसेक साल का यह मरियल सा लौंडा आने वाले वक्तों में अस्सी करोड़ की आबादी वाले अपने ही मुल्क की एकता और अखंडता के लिए इतनी बड़ी चुनौती बन जाएगा।

सन 1947 में पंजाब के मोगा जिले के रोडे गाँव में एक गरीब किसान जोगिन्दर सिंह के घर एक बेटे ने जन्मलिया। मेहनत मजूरी करके गुजरा करने वाले किसान ने बच्चों की फौज खड़ी होते देख बेटे का नाम रख दिया -जरनैल सिंह. बाद में जोगिन्दर सिंह ने जरनैल को
भिंडर गाँव में स्थित एक धार्मिक संस्था दमदमी टकसाल के बाबा गुरबचन सिंह खालसा को सौंप दिया। सिर्फ़ तीस साल की उम्र में जरनैल इसी संस्था का प्रधान बन गया और संत जरनैल सिंह खालसा भिंडरवाला कहलाने लगा उसके बाद उसने धर्म प्रचार का काम शुरू किया।
सिखों के इतिहास में वह पहला संत था जो स्वयं 12 राउंड वाला वेम्बले स्कॉट पॉइंट 38 बोर का रिवाल्वर लेकर घूमता था और सिखों को भी आग्नेयास्त्रों को रखने और शस्त्रधारी बनने के लिए प्रेरित करता था। पंजाब में वैसे भी लोग हथियारों का खासा शौक रखते हैं इसलिए जल्द ही लोगों की जुबान पर बाबा का नाम छाने लगा।

आजकल फसल काटने के लिए जिस तरह हार्वेस्टर कमबाइन का इस्तेमाल होता है वैसे ही वोटों की फसल काटनेके लिए इन बाबाओं और डेरों ,संस्थाओं का इस्तेमाल हमेशा से ही होता रहा है.
प्रसिद्धी की पहली पायेदान पर ही सियासतदान इन्हें कील कर पिटारी में डाल लेते हैं। इमर्जेंसी के बाद जनता राज के दौरान भिंडरावाले पर ज्ञानी जैल सिंह की नज़र पड़ी। ज्ञानी जैल सिंह जानते थे कि गुरुद्वारों कि गोलक और जत्थेदार ही अकाली दल के जनाधार कि वजह हैं और इस वजह को झटक लेने के लिए सबसे शक्तिशाली मोहरे के रूप में उन्होंने 'जरनैल' को चुना।

इधर जरनैल को भी निरंकारियों के साथ हुयी झड़प में मारे गए अपने साथियों का हिसाब चुकता करने के लिए एकसियासी सरपरस्त की जरूरत थी। बस बात चल निकली और और दोनों एक दूसरे का इस्तेमाल करने लगे २४अप्रैल १९८० को निरंकारी बाबा गुरबचन सिंह की हत्या के साथ ही देश की एकता और अखंडता को दाव पर लगादिया गया।

अकाली नेता उसे अपने लिए चुनौती मान रहे थे इसलिए बादल ने शुरूआती दौर में उसे कांग्रेस का एजेंट घोषितकर दिया जरनैल भी बादल की सिख्खी का मखौल उडाने लगा। साथ के साथ वह हिन्दुओं के ख़िलाफ़ भी जहर घोलने लगा, जिन्हें वह टोपीवाले या धोतियाँ वाले कह कर बुलाता था। आर्यसमाजियों को 'महाशे' और निरंकारियोंको 'नरक्धारी' बताता था। धीरे धीरे उसका जनाधार बढ़ने लगा मगर पंजाब केसरी के संपादक और हिंद समाचार समूह के प्रमुख लाला जगत नारायण की हत्या के बाद इन स्तिथियों के एक नया मोड़ ले लिया।

जिस दरबार साहिब में आग्नेयास्त्र लेकर जाने की पाबन्दी है वहां जरनैल सरेआम हथियार लेकर जाने ही नही लगा उसने अपने सभी हत्यारे साथियों के लिए हथियार दरबार साहिब के अंदर इक्कठा करने शुरू कर दिए।
दरबार साहिब जैसी पवित्र जगह को निर्दोष लोगों के हत्यारों के छुपने और अय्याशी करने का अड्डा बना दिया अकाल तख्त का दुरूपयोग होने लगा. धडाधड हुक्मनामे जारी होने लगे। सब अपने अपने दडबों में दुबक गए। अकालियों सहित किसी भी सिख ने इसे गुरु घर की बेअदबी मानते हुए इसका विरोध नही किया बल्कि बादल और अन्य ज्यादातर नेताओं ने अपने बाल बच्चों सहित परिवारों को विदेश भेज दिया।

1982 में धर्मयुध्ध मोर्चा में 30 हजार से ज्यादा किसानों की गिरफ्तारी बेकार चली गयी। आनंदपुर साहिब प्रस्ताव का समर्थन करके भिंडरावाला, संत लोंगोवाल जैसे नेताओं को अपने करीब ले आया था और बड़ी तेजी से अपने समर्थकों में इजाफा करता जा रहा था। अकाली दल की सभाओं में हत्याओं के हुक्मनामे और हत्यारों को संरक्षण देने की बातें करने लगा। (सुने उसकी अपनी आवाज़ में यह बातें)

अब तक भिंडरावाले को परिस्तिथियाँ ऐसी जगह पर घेर ले गयी थी जहाँ से उसका वापिस लौटना नामुमकिन था।कांग्रेस के पास अपनी पार्टी के हित में उसे मार डालने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। हाँ ऑपरेशन ब्लू स्टार टाला जा सकता था। लेकिन उस हालत में भिंडरावाले को जिन्दा पकड़ा होता तो वह कब का जेल से रिहा होकर खालसा राज की स्थापना के लिए फ़िर एक बार युध्ध छेड़ चुका होता। बहरहाल ब्लू स्टार ऑपरेशन में एक मुर्ख ' जरनैल' मारा गया

सबसे बड़े दुःख की बात यह है कि इतना बड़ा संताप जिस देश ने भोगा हो उसने भिंडरावाले कि मौत से ही सब्र करलिया ऑर इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि
आदमी मरता है, विचार कभी नहीं मरता किसी ने जरूरत और जिम्मेवारी नही समझी कि उसे मृत घोषित करके उसके भक्तों को उसके नाम का खुला इस्तेमाल करने कि आजादी पर रोक के उपायों पर गौर किया जाए। उसकी तस्वीरों वाली टीशर्ट ऑर कारों के स्टिक्कर, भाषणों के कैसेट धड़ल्ले से बिक रहे हैं. आज भी गुरुद्वारों में उसके नाम के शहीदी समागम मनाये जा रहे हैं और सब सत्ताधारी चुपहैं। बुध्धिजिविओं के कानों जूं नहीं रेंग रही। पक्ष-प्रतिपक्ष के खेमों में बँटा मीडिया गिरावट की वह सभी हदें पार् कर चुका है कि 'खुल्ला खेल फर्रुखाबादी' जैसी कहावतें उनके लिए इस्तेमाल करना बड़ा बेमानी सा लगता है . कोई भी गाली बड़ी पिद्दू सी नज़र आतीं हैं।

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